Meera Bai का कवि परिचय : मीरा बाई ( Meera Bai ) का कवि परिचय, रचनाएं, भाव पक्ष – कला पक्ष और साहित्य में स्थान नीचे दिया गया है।
मीरा बाई का कवि परिचय | Meera Bai ka lekhak Parichay In Hindi
जीवन-परिचय-
मीराबाई का जन्म राजस्थान में जोधपुर के मेड़ता के निकट कुड़की ग्राम (मारवाड़ रियासत) में सन् 1498 ई. में हुआ था। वे राठौर रत्नसिंह की पुत्री थीं। बचपन मैं ही मीरा की माता का निधन हो गया था। इस कारण ये अपने पितामह राव दूदाजी के साथ रहती थीं। राव दूदा कृष्ण भक्त थे। अतः मीरा भी कृष्ण भक्ति में रंग गई। मीरा का विवाह उदयपुर के महाराज भोजराज के साथ हुआ था। विवाह के कुछ वर्ष उपरान्त ही इनके पति का स्वर्गवास हो गया। इस असह्य कष्ट ने इनके हृदय को भारी आघात पहुँचाया। इससे उनमें विरक्ति का भाव पैदा हो गया। वे साधु सेवा में ही जीवन-यापन करने लगीं।
वे राजमहल से निकलकर मंदिरों में जाने लगीं और साधु संगति में कृष्ण-कीर्तन करने लगीं। इनकी अनन्य कृष्ण भक्ति और संत समागम से राणा परिवार रुष्ट हो गया। इससे चित्तौड़ के तत्कालीन राणा नेउन्हें भाँति-भाँति की यातनाएँ देना शुरू कर दिया। कहते हैं कि एक बार मीरा को विष भी दिए गया, किन्तु उन पर उसका कोई असर नहीं हुआ। राणा की यातनाओं से ऊब कर ये कृष्ण को लीलाभूमि मथुरा-वृन्दावन चली गईं और वहीं शेष जीवन व्यतीत किया। मीरा अपने अनिय दिनों में द्वारका चली गईं। वहाँ ही सन् 1546 ई. में वे स्वर्ग सिधार गईं।
साहित्य सेवा- मीराबाई द्वारा लिखित काव्य उनके हृदय की मर्मस्पर्शी वेदना है औ भक्ति की तल्लीनता है। उन्होंने सीधे सरल भाव से अपने हृदय के भावों को कविता के रू में व्यक्त कर दिया है। उनका साहित्य भक्ति के आवरण में वाणी की पवित्रता है और संगीत का माधुर्य है। मन की शान्ति के लिए और भक्ति मार्ग को पुष्ट करने के लिए मीरा की साहित्य सेवा सर्वोच्च है।
रचनाएँ-
मीराबाई के नाम से जिन कृतियों का उल्लेख मिलता है उनके नाम हैं- ‘नरसी जी को माहेरो’, ‘गीत गोविन्द की टीका’, ‘राग-गोविन्द’, ‘राग सोरठा के पद’, ‘मीराबाई का मलार’, ‘गर्वागीत’, ‘राग विहाग’ और ‘मीरा पदावली’ (संग्रह)।
भाव पक्ष –
मीराबाई द्वारा रचित काव्य साहित्य में उनके हृदय की मर्मस्पर्शिनी वेदना है, प्रेम की आकुलता है तथा भक्ति की तल्लीनता है। उन्होंने अपने मन की अनुभूति को सीधे ही सरल, सहज भाव में अपने पदों में अभिव्यक्ति दे दी है। मीरा के पदों के वाचन और गायन से संकेत मिलता है कि मीरा की भक्ति भावना अन्तःकरण से स्फूर्त है। उनकी रचनाओं में माधुर्य समन्वित दाम्पत्य भाव है। मीरा का विरह पक्ष साहित्य की दृष्टि से मार्मिक है। उनके आराध्य तो सगुण साकार श्रीकृष्ण हैं। मीरा के बहुत से पदों में रहस्यवाद स्पष्ट दिखाई देता है जिसमें प्रति उत्सुकता, मिलन और वियोग के चित्र हैं।
कला पक्ष –
(1) भाषा- मीरा की भाषा राजस्थानी और ब्रजभाषा है, किन्तु पदों की रचना ब्रजभाषा में ही है। उनके कुछ पदों में भोजपुरी भी दिखाई देती है। मीरा की भाषा शुद्ध साहित्यिक भाषा न रहकर जनभाषा ही रही।
(2) शैली- मीरा ने मुक्तक शैली का प्रयोग किया है। उनके पदों में गेयता है। भाव सम्प्रेषणता मीरा की गीति शैली की प्रधान विशेषता है।
(3) अलंकार- इनकी रचनाओं में अधिकतर उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास आदि अलंकारों को सर्वत्र देखा जा सकता है।
साहित्य में स्थान –
मीरा ने अपने हृदय में व्याप्त वेदना और पीड़ा को बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। भक्तिकाल के स्वर्ण युग में मीरा के भक्ति भाव से परिपूर्ण पद आज भी अलग ही जगमगाते दिखाई देते हैं।
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